दिन रात रोई
**** माहिया *****
***दिन रात रोई ***
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1.
दिन रात रही रोई,
जग है देख लिया,
तुम सा हसीं न कोई।
2
बागों में फूल खिले,
राही क्या करता,
राहों में शूल मिले।
3
बातों पर क्या रोना,
कण कण ढूंढ लिया,
खाली कोना-कोना।
4
सागर में पानी है,
लहरें लहराती,
भीगती जवानी है।
5
प्रीत हवा का झौंका,
जो ये गुजर गया,
मिलता कभी न मौका।
6
सावन की लगी झड़ी,
बाँहों में थामो,
भीगी मैं खड़ी खड़ी।
7
मुंह पर ताला जड़ा,
पीछे देख जरा,
राह में हूँ मैं खड़ा।
8
मनसीरत मन भारी,
कुछ ना कर पाए,
दिखती है लाचारी।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)