*दिन बीते बीते महीने बीत गए कई साल*
दिन बीते बीते महीने बीत गए कई साल
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दिन बीते बीते महीने बीत गए कई साल,
बिछड़े साथी मिले नहीं कैसा कुदरत चाल।
भटके राही हम अपने इस जीवन पथ से,
कोई दर नजर न आए बिगड़ी-बिगड़ी चाल।
जो थे अपने खुद से प्यारे हो गये हैँ पराये,
शत्रु हुआ जमाना सारा कौन बनेगा ढाल।
कौन से लुटेरे कहाँ से आये कहाँ चले गए,
खाली झोली लेकर घूमे लूट लिया है माल।
सपनों मे आकर खूब सताएं बनकर बयार,
यादों मे उनकी पल-पल हाल हुआ बेहाल।
समय का पहिया घूमता जल नभ ताल पर,
कभी किसी के हाथ न आया बीता काल।
कोई भी पंछी बच नहीं पाया है मनसीरत,
लोभ मे सदा ठगता आया मोह माया जाल।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैंथल)