दिन बीता,रैना बीती, बीता सावन भादो ।
दिन बीता,रैना बीती, बीता सावन भादो ।
बाट निहारे कब तक बैठूं हो गई में साधो ।।
मुख दर्पण में देख मुझे सजना मेरा मुसकाता है ।
नैनन मिलाने को मन उसका, हृदय कितना मचलाता है ।
सांझ हुए तुम बाट निहारो , रैना बीती जाए ।
निंदिया आँखों में लिए ,द्वार पर ही सो जाए ।।
चुनरी सर सर करती मेरी, लहर लहर उड़ जाए ।
साजन मेरा दौड़ दौड़ , कोसों दूर भागा जाए ।।
कहे साजन मोरा मुझसे…..
आहे भर भर के सजनी तुम जब रोती बिलखती हो ।
बिखरे खुले बालों में कितनी व्यथित तुम दिखती हो ।।
मटक-मटक कर चलती, घुंघरू तब खनकते है ।
देख तेरी ये दशा पर कितने ह्रदय पिघलते है ।।
फूल तोड़ फुलवारी से जब तुम धूप में नहाती हो ।
हाय हाय दैया करती तुम कितने गीत गाती हो ।।
कहे सजनी अब साजन से ।
मुझे टूक टूक देख तुम अपना समय क्यों गवांते हो ।
भीतर पड़ी खटिया पर काहे ना सो जाते हो ।
बहुत हुई अब ताका झांकी , बंद करो अब ये काम ।
खाली बैठे हो तो दरो म्हारी चना की दाल ।।