दिन जल्दी से
बीत रहे हैं दिन जल्दी से
बीत रही है जल्दी रात
जाग बटोही जल्दी जाग
हाली-हाली हाथ बढ़ा
चिड़ियों ने डैने फैलाये
सूरज आकर शीश चढ़ा
अम्बर सब मोती चुन लेगा
होते होते ही प्रभात
उजियारा राहों का बढ़के
पथ सौ-सौ दिखलाये ना
स्वर्णिम वैभव से किरणें
मन तेरा भरमाये ना
शिथिल कहीं कर डाले न
कर्मेन्द्रियों को पाँचों वात1
धौलागिरि सारा रंग जाये,
रावण कुटिल,कुचालों से
उससे पहले पा लेना है
मंजिल अपनी चालों से
नहीं समय है रुकने का
न करने भर की ढेरों बात
तु्मको ही पूरे करने हैं
जीवन के सब कार्य अशेष
जितने पल हैं, जितनी साँसें
वह ही तेरा मूल, धनेश
कर लो,कर लो जो करना है
आने से पहले बारात
1 पाँच वायु- प्राण,अपान,व्यान,उदान,समान।