दिन छोटे हो गये
गीत
दिन छोटे हो गये
दिल छोटे हो गये
क्या से क्या हो गये
क्या से क्या हो गये
दहकते मकान में
पानी था बेसबर
सोच रहा वो यही
जाऊं मैं किस तरफ
कूप कहाँ खो गये
क्या से क्या हो गये।।
सपनों की रेत पर
मुष्टिका खेत पर
आई न बालियां
पंछी भी बेखबर
बीज क्या बो गये
क्या से क्या हो गये
सरसरी हवा चली
मनचली हवा चली
तिनके से आंख में
तस्वीर धुंधला चली
चित्र चित्र खो गये
क्या से क्या हो गये।।
सूर्यकांत द्विवेदी