*दिन गए चिट्ठियों के जमाने गए (हिंदी गजल)*
दिन गए चिट्ठियों के जमाने गए (हिंदी गजल)
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1)
दिन गए चिट्ठियों के जमाने गए
पोस्टकार्डों के दर्शन सुहाने गए
2)
अब न बारात है अब न जनवासा है
सेहरा-काव्य कवियों के गाने गए
3)
बैंड-बाजे की अब धूम चारों तरफ
दौर शहनाइयों के पुराने गए
4)
नाम से या पिता से है पहचान कब
फ्लैट नंबर से अब सिर्फ जाने गए
5)
धूप में शीत की शौक सबको ही था
अब न बरसों से पापड़ बनाने गए
6)
कौन घर पर बनाता है छह सब्जियॉं
जब अतिथि आए होटल खिलाने गए
7)
फीस भरना पढ़ाई की ऐसी हुई
भूमि की ज्यों रजिस्ट्री कराने गए
8)
गाड़ी-बॅंगला सभी आजकल किस्त पर
हर महीने उसी को चुकाने गए
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451