दिन आ रहे हैं
बदी को मिटाने के दिन आ रहे हैं।
नया दौर लाने के दिन आ रहे हैं।
अरे ओ फरेबी न तुझ पर भरोसा
कि तुझको मिटाने के दिन आ रहे हैं।
तुझ को मिटा कर ही अब सांस लेंगे
तिरंगा फहराने के दिन आ रहे हैं।
सुनी हैं कभी तूने सिंह की दहाड़ें
तुझे जड़ से हटाने के दिन आ रहे हैं।
वतन से बड़ा है न कोई जहां में
उस पर मिट जाने के दिन आ रहे हैं।
शमा ए वतन पर फिदा हम परवाने
तुझ पर जां लुटाने के दिन आ रहे हैं।
अजी आ गयी अब तो जल्दी दिवाली
दिये अब जलाने के दिन आ रहे हैं।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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