दिनभर
दिन भर बस यही चलता रहा है जहांगीर पुरी बाईपास सिरसपुर कादीपुर या फिर कादीपुर सिरसपुर बाईपास जहांगीर पुरी कितने ही लोग शायर कुछ रोज़ वाले भी यहीं कहीं आते जाते रहते हैं रेलिंग पर हाथ रखे वो आती जाती बसो को देखता रहता पर कोई भी पर्स पर वो हाथ साफ नहीं कर सका।दोपहर हो चुकी है पर अभी भी वो किसी भीड़ वाली बस की तलाश में हैं जहां किसी की जेब काट सके ।बढ़ी हुई दाढ़ी सलवटों भरा खलवाट चेहरा पर हाथों में अजीब सी चपलता मैंने उसको यहां कई मर्तवा देखा है और मैने उसे उस दिन भी देखा था जब वो पुलिस के हाथ लग गया था पता चला कि वो जेब काट रहा था कुछ रोज़ पहले हम दोनों एक बस में सवार थे वो सीढ़ियों पर ही लटका था वो हर एक से टकरा रहा था और बड़ी होशियारी से स्वयं को अलग कर लेता था बस सिरसपुर की ओर बढ़ रही थी।टिकट चालक अभी भी सिरसपुर कादीपुर चिल्ला रहा था उस व्यक्ति का चेहरा हर एक में अपना शिकार टोह रहा था एक बुजुर्ग तो जेब कटवाकर चिल्लाता रहा पर जब तक ये साहब अपना रास्ता ले चुके थे।दिन भर बस यही चलता है रोज कादी पुर से पुनः कादीपुर।पर क्या यही जीवन है पूछने पर पता लगा कि अब उसे कोई नौकरी नहीं देता खूब ढूंढने पर भी पर खाना तो चाहिए ही उसका लड़का बीमार है घरवाली दो चार घरों में बर्तन धोती है असल में वो मजबूर है तभी ये सब करता है पिछले तीन सालों से। जीवन को अपने तरह से जीने के लिए मात्र सपने ही नहीं साधन भी होने चाहिए बुरे वही नहीं जो ये सब करते हैं बल्कि वो जो उनके लिए कुछ नहीं कर सकते एकसमान है इनकी इच्छाएं तो मिट चुकी है पर जीने के लिए कुछ तो चाहिए।मैं रेलिंग के करीब उसके भुझे चेहरे में बदलती चेष्टाओं को देख रहा था पर दो मिनट बाद ही वही कादीपुर बाईपास आदि की आवाजें फैल गयी।
मनोज शर्मा