दिनकर
‘दिनकर’
पूर्व दिशा में जगमग करते,
हे दिनकर जब तुम आए।
स्वर्ण-सिंदूरी सी चादर ताने,
रवि तुम यूं प्राची पर छाए।
मासूम कली भी देख तुम्हें,
है कुछ यूं मुस्काई,
खोल पंखुड़ी होले से,
ज्यों हो नव नार लजाई।
जाग उठी धरा वसुंधरा भी,
अभी तक बैठी थी अलसाई ।
भँवरों ने भी हिल-मिलकर,
बगिया में गीत प्रेम के गाए ।
पूर्व दिशा में जगमग करते,
हे दिनकर !जब तुम आए।
गूंजे नाद ओंकार,
मंदिर-मस्जिद गिरजाघर -गुरूद्वारे,
जन-जन बोल रहे रवि बस,
तेरे ही जयकारे।
हाथों में जल कलश लिए वे,
तुम्हें चढ़ाने आए,
पूर्व दिशा में जगमग करते
हे दिनकर !जब तुम आए।
पिघला-पिघला हिम भी बहता,
नदिया भर-भर जाती,
मलय पवन भी मद-मस्त बनी,
इत-उत इतराती आती।
तुहिन बिंदु भी हिल–डुलकर,
हरी घास को नाच नचाए ,
पूर्व दिशा में जगमग करते,
हे दिनकर ! जब तुम आए |
तुम बिन पूर्ण कहाँ है,
ये धरा-वसुन्धरा हमारी,
तुम ही तो हो देव भानु ,
श्वास और आस हमारी।
सतरंगी किरणों संग लुक-छुकर,
शशि प्रेम तराने गाए,
पूर्व दिशा में जगमग करते,
हे दिनकर जब तुम आए।
स्वर्ण-सिंदूरी सी चादर ताने,
रवि तुम यूं प्राची पर छाए।
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