दिनकर/सूर्य
सात रंग का घोड़ा गाड़ी,
जिस पे दिनकर करे सवारी।
स्वर्ण प्रभा की डोरी थामे,
जग में फैलाते उजियारी|
मिटी शोहरत शशि की देखो,
नष्ट समर में तम का घेरा|
है स्वामित्व चहुँ ओर रवि का,
दोष रहित नित नभ का फेरा|
छाई है अब रश्मी सुंदर,
नभ में फैली लाली प्यारी|
सात रंग का घोड़ा गाड़ी,
जिस पे दिनकर करे सवारी।
हुआ सवेरा चिड़िया चहकी,
तितली-भौरें सब बौराये|
पुष्प-पुष्प मकरंद बिखेड़े,
हवा चले खुशबू फैलाए|
चित चंचल है मादक मधु से,
वारि कुंभ छलके फुलवारी|
सात रंग का घोड़ा गाड़ी,
जिस पे दिनकर करे सवारी।
आशा का प्रतिरूप बल्लरी,
स्वप्न परिधि से भी आगे|
टूटा है एकांत सभी का,
नवल जोश जन-जन में जागे|
प्रात काल की मधुमय बेला,
ताकतवर्धक अति सुखकारी|
सात रंग का घोड़ा गाड़ी,
जिस पे दिनकर करे सवारी।
-वेधा सिंह