दिगभ्रमित
मैं,दिगभ्रमित सा खडा सोचता,
जाऊँ किधर ,किस राह,
आगे है चौराहा,
चहुँ दिशाओं में,छाया है अन्धकार,
जाऊं किस दिशा में,सुझता नही कोइ विचार,
मैं,चला कहाँ से,कुछ याद नही मुझे,
मैं,चला क्यों था,इसका भी अब आभास नही मुझे,
मैं,चलता ही रहा दिगभ्रमिथ सा,
फंस गया मै किस ब्यामोह में
खो गया हुँ मै किस मोह में,
मर गया आह, ओह मैं,
विस्मृत,दिगभ्रमित सा खडा सोचता मैं,
भयाक्रान्त कल्पनाएं,
मै दूर भागता इनसे,ये और निकट आएं,
मेरे मन मश्तिषक पर छा जाएं,
मुझे धिक्कारती,और इठलाएं,
घायल,मुझे कर जाएं
मै,आहत सा खडा,और यह मुस्करायें,
क्या था मै,क्या हो गया,
आह मुझको यह क्या हो गया,
किन खयालों में,मै खो गया,
मैं,दिगभ्रमित सा,खडा यह सोचता।