*दिख रहे हैं आज जो, अदृश्य कल हो जाऍंगे (हिंदी गजल/ गीतिका)*
दिख रहे हैं आज जो, अदृश्य कल हो जाऍंगे (हिंदी गजल/ गीतिका)
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दिख रहे हैं आज जो, अदृश्य कल हो जाऍंगे
लोग बनकर राख सब मटकी में बैठे पाऍंगे
2
जोड़कर रखते रहे, जो विज्ञ धन की गड्डियॉं
बाद मरने के, सभी मूरख बहुत कहलाऍंगे
3
यह गनीमत है कि सब की मृत्यु तय है एक दिन
आत्मसंयम-पाठ वरना, हम किसे सिखलाऍंगे
4
एक शाश्वत आत्म है, इस देह में बैठा हुआ
बोध उसका देह में, अभ्यास से हम लाऍंगे
5
आत्मचिंतन-ध्यान-सेवा-अध्ययन होता बड़ा
साधना के चार यह आयाम फल दिखलाऍंगे
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विज्ञ = चतुर, होशियार
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451