दिखा कोई अपना क्या यहां ?
एक खिड़की है गली में मेरे चांदनी छिटकी रहती है यहां
डर अंधियारे का था शायद इस लिए ज्यादा रहती थी यहां !
कोई नहीं था अपना शायद बस हम गस्त लगाते रहते थे
शराफ़त में उन्होंने पूछा था कहिए कोई रहता है क्या यहां ?
हमने पहले उनको गैर से देखा फिर इक नजर खुद को देखा
हौले से हॅंस कर बोली वो, कुछ गिरा था मेरा देखा क्या यहां ?
बड़े भोलेपन से उसने महको बतलाया यार तुम ग़ज़ब करती हो
अनजान गली में अपना तकती हो, दिखा कोई अपना क्या यहां ?
~ सिद्धार्थ