दिखावे के रिश्ते
पैसों का कैसा अलग ही खेल है
वृद्ध माँ-बाप का फिर से मेल है
नकली रिश्तों को अब जान लो
यही कलियुग की बडी सी जेल है
प्रेम से भरा सब का जीवन हो
हरा भरा रिश्तों का उपवन हो
असली धन है मानव की सेवा
हर प्राणी का दोष मुक्त मन हो
________अभिषेक शर्मा