‘ दिखावा ‘
तस्वीरों में खूब हँसना – मुस्कुराना
हाथों में हाथ डाल तस्वीरें खिंचवाना ,
क्या वास्तव में इतना आसान होता होगा
झूठे आडंबर पर दिल कितना रोता होगा ,
अगर सच का प्यार है तो दिखावा कैसा
आँखों के कोरों में आँसूओं का ठहरावा कैसा ?
देखने वालों को तो पल में सब दिख जाता है
बिना चश्में के उम्र का तज़ुर्बा काम आता है ,
जितनी नकली हँसी हँस कर बगल में सट कर
पता चल जाता है दिल हैं तुम्हारे ज़रा हट कर ,
सिर्फ तस्वीरों में ना दिखो तुम यूँ प्रेम – प्यार से
ज़रा इनसे बाहर निकल कर भी रहो प्यार से ,
पास का दिखावा छोड़ मन से दूरियां कम करो
हर बात मे क्यों तकरार थोड़ा सा तो गम करो ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 06/12/2020 )