दिखाई देने वाला ख़्वाब हर क़ामिल नहीं होता
दिखाई देने वाला ख़्वाब हर क़ामिल नहीं होता
ज़ुबाँ से जो निकल जाए वो दर्देदिल नहीं होता
शमा रौशन हुई तो ख़ाक परवाना भी होता है
मुहब्बत में मिलन होना भी मुस्तक़बिल नहीं होता
चला जो तीर नज़रों का ज़िगर के पार निकला है
ख़लिश दिल में उठाकर भी वो क्यूँ कातिल नहीं होता
ज़िगर में रख के’ खुदगर्ज़ी नहीं आशिक़ बना कोई
है फ़ितरत जिसकी सौदाई वो बस ग़ाफ़िल नहीं होता
हुआ हासिल बताओ क्या यूँ नफरत पालकर दिल में
हुई जिसको मुहब्बत वो कभी संगदिल नहीं होता
बहाकर खून इंसानी तुझे हासिल न कुछ होगा
बढाना प्यार हर दिल में भी कुछ मुश्किल नहीं होता
ख़यालों में पिरोता हूँ मैं’ बस जज़्बात की लड़ियाँ
किसी का ग़म बंटाने को कुई शामिल नहीं होता
तज़ुर्बा ज़िन्दगी का मुझको बस इतना है जज़्बाती
परखना मत परखने से कोई काबिल नहीं होता
जज़्बाती