दास्तान
इंसान की ज़िंदगी की बस इतनी सी है दास्तान ,
दो घड़ी का मेला है और फिर सब सुनसान।
छोटी सी ज़िंदगी है और बेशुमार हसरतें ,तौबा !
फानी है धोका है सब ,कहाँ समझता है इंसान।
इंसान की ज़िंदगी की बस इतनी सी है दास्तान ,
दो घड़ी का मेला है और फिर सब सुनसान।
छोटी सी ज़िंदगी है और बेशुमार हसरतें ,तौबा !
फानी है धोका है सब ,कहाँ समझता है इंसान।