दास्तान-ए- वेलेंटाइन
दास्तान-ए- वेलेंटाइन
फरवरी की शुरुआत लाइ,
सुगबुगाहट शहर के हर होर्डिंग पर ।
लिए प्रेम की शहनाई,
अजीब सा बुखार चढ़ने लगा प्रेमी युगलों पर ।
मैंने भी सोचा की,
क्यों न इस बार इज़हार कर लू ।
इस वेलेंटाइन श्रीमती को,
मैं भी आई लव यु कह दू ।
एक दिन पहले
लगाया मैंने दफ्तर से फ़ोन ।
सामने से आवाज आई.
हेलो कौन ।
मैंने कहा कि मैं बोल रहा हूँ.
बताओ कि कल के लिए क्या लाये ।
श्रीमती बोली कि दो किलो आलू, गोभी, हरा धनिया,
और छोटू की पावभाजी कि ज़िद हैं तो ६ पाव ले आयें ।
फ़ोन रखते हुए,
सर मैंने ठोका ।
प्यार को मेरे.
इस तरकारी ने रोका ।
दफ्तर से निकल मुझे जल्दी थी,
सामान खरीदने की ।
दोनों हाथों में थे झोले सामन से लदे हुए,
तभी महसूस की मैंने खुशबू गुलाब के गुलदस्ते की ।
मन किया चलो,
गुलदस्ता ही ले लू ।
दो पल ख़ुशी के,
इस बहाने ही जी लू ।
पूछा मैंने की,
भैया बड़ा गुलदस्ता कितने का.
उसने कहा हज़ार ।
फिर पूछा,
भैया मध्यम कितने का.
उसने कहा 5 सौ ।
मैंने कहा छोटा ही बता दो.
उसने कहा 3 सौ ।
मेरे माथे की शिकन देख वो बोला,
चोचले हैं साहब, जाने दो इस नए ज़माने को ।
आप तो ये 5 ताज़ी कलिया ले लो,
2 सौ में दे दूंगा आपकी इज़्ज़त बचाने को ।
शर्म से तो,
मैं भी था तार तार ।
लिया फिर उस ५ कली के गुलदस्ते को,
बाकी पैसे मांगते हुए दिया मैंने नोट एक हज़ार ।
आगे बड़ा तो,
बड़ी से गिफ्ट शॉप आ गयी ।
एक ग्रीटिंग कार्ड लेने की,
मन को भा गयी ।
एक कार्ड पसंद कर,
काउंटर पर आया ।
अंकल ने मुझे ऊपर से नीचे देख,
गुस्से से फ़रमाया ।
अब तो आपके भी बाल,
थोड़े सफ़ेद हो रहे हैं ।
लगता हैं आप पुरे नहीं पर,
आधे तो सठिया रहे हैं ।
इन कार्ड्स पर तो,
आज के बच्चो को पैसे उड़ाने हैं ।
आप तो होश रखो,
आपको तो पैसे कमाने हैं ।
फिर भी मैंने श्रीमती के लिए,
कार्ड लिया मन मसोस कर ।
3 सौ लगे तो सही,
पर मैंने सोचा की अफ़सोस न कर ।
अपने बैग में छुपा,
गुलदस्ता और कार्ड ।
घर में घुसा बैग को थामे,
जैसे मैं हूँ सिक्योरिटी गॉर्ड ।
झोले को किचन में रख,
हॉल में आ गया ।
खाना खाकर,
जल्दी ही सो गया ।
रात १२ बजते ही,
गुलदस्ता और कार्ड लिए श्रीमती को उठाया ।
ज़ोर से क्या हुआ कहते हुए.
श्रीमती ने मुझे डराया ।
शांत करते हुए मैंने,
गुलदस्ता और कार्ड थमाया उनके हाथो में ।
इंतज़ार में था कि,
आई लव यु कि शब्द आएंगे कानो में ।
परन्तु उम्मीद मेरी,
तब और टूटी ।
जब कुछ कहने के पहले,
उन्होंने कीमत पूछी ।
मैंने कहा ५ सौ,
कि कीमत हैं तुम्हारे हाथो के सामान की ।
वो बोली नज़र नहीं आती तुम्हे ४ महीने से ,
सूनी कलाई इन हाथो की ।
पैसे की कीमत तुम क्या जानो,
मैं तो लगी हूँ बच्चो के लिए बचाने को ।
और तुम हो के मानते नही,
लगे हो फ़िज़ूल के कामो में उड़ाने को ।
मेरे मन को टीस तो लगी,
पर वो गलत न थी ।
ऊपर से सब कुछ तो ठीक था,
पर उसके आंसुओ से मेरे लिए एक सीख तो थी।
प्यार तो उसका भी,
कम न था मेरे लिए ।
पर ज़रूरते ज्यादा थी,
पैसे लगाने के लिए ।
समझ में मेरे भी अब आ गया था.
की गृहस्थी की एक ही हैं गाइडलाइन ।
प्यार हो हमेशा दिल से अपनों के लिए,
क्यूंकि पैसे उड़ाने से नही होता कोई वेलेंटाइन ।
महेश कुमावत