दास्तान इन्सान की
अजीब दास्तान है इन्सान की
सृष्टि के महानायक महान की
कहता है कुछ, करता है कुछ
खाता हैं वो अपनी जुबान की
जुबान में मिठास,दिल खट्टास
बातें करता है,जीतने जहाँ की
लालची, स्वार्थी, मोह, मायावी
बातें सुनाता है,गीता कुरान की
जाति,धर्म का रहे जहर उगलता
ढोंग करता है,समाज समान की
इन्सान होकर,है इन्सान ठगता
बातें करता सदा,दीन ईमान की
निज फल में सदा छल है करता
शेखी फिरे करता हो कुर्बान की
दिल में खोट,मारे अंदरूनी चोट
सीख देता फिरे,शिक्षा पुराण की
धूर्त,छल,कपट से कमाता है नोट
ढोंग करता ईमानदार इन्सान की
बिक गया जमीर,कर्म बदनसीब
बन फकीर,काम करे बेईमान की
अजीब दास्तान है इनसान की
सृष्टि के महानायक महान की
सुखविंद्र सिंह मनसीरत