दास्ताँ…..
ख़त्म होने को हैं दास्ताँ अपनी तब पैगाम आया तो क्या आया!
सिलसिला ख़त्म हुआ तब पैगाम भिजवाया तो क्या भिजवाया!
बरसो बरस खड़े रहे सरे राह हम तो उस एक तेरे वादे के लिये!
आँख लगी थी तब पास आकर हमको जगाया तो क्या जगाया!
बस हम तो जीते रहे अब तलक एक तेरी झलक पाने के लिये!
मासूम दिल मायूस हुआ तब चेहरा दिखाया तो क्या दिखाया!
उम्र भर तरसते रहे प्यार पाने को तेरा हर लम्हा और हर घड़ी!
आखिरी वक़्त पर हम ने तुझ को सामने पाया तो क्या पाया!
?-अनूप एस