*दावत : आठ दोहे*
दावत : आठ दोहे
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(1)
दावत – चिंता से कहाँ , छूटा है इंसान
मृत्यु-भोज सिर पर खड़ा ,कहता है शमशान
(2)
दावत का मतलब यही ,अक्सर झूठी शान
तड़क-भड़क झूठी हुई ,झूठा सब अभिमान
(3)
दावत तो बढ़िया हुई ,लेकिन भारी कर्ज
जाने कितने वर्ष में , मिट पाएगा मर्ज
(4)
प्रीतिभोज में प्रीति कम ,व्यंजन की भरमार
आधा चखते – फेंकते , दोना बारंबार
(5)
प्रेम लिफाफे से तुला ,जितना इसका भार
मेजबान ने तय किया ,आगंतुक का प्यार
(6)
मध्यम-वर्ग कराहता , महॅंगे होटल-कक्ष
कैसे बिल इनका भरे ,प्रश्न आज यह यक्ष
(7)
नेता-अभिनेता रखें ,दावत का लघु-रूप
सँवरेगी तस्वीर सब ,देख-देख कर भूप
(8)
गाढ़ा नुकती – रायता , गंगाफल की याद
आलू और कचौड़ियाँ , वाह-वाह क्या स्वाद
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मेजबान = आयोजनकर्ता
भूप = राजा
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उ. प्र.) मोबाइल 99976 15451