दारू पीकर ,दारू से मुक्ति मागते**
मान मर्यादा,
भूल गए।
दौड़ा रहे घोड़े मन के।
दारू पीकर घर से,
कारजो में जा रहे ।
नहीं छोड़ते देव स्थलों को ,
पीकर रहते सदाबहार।
मन्नतें मांगते दारू पीकर ,
बाबा हमारी छुड़ादो दारु ।
ऐसी अर्जी आपसे ,
झट पीने की लत छूटे।
मैं बन जाऊं धनवान,
यही मेरा आह्वान ।
“अंशु कवि “