*दायरे*
Dr Arun Kumar shastri
तू रोता अपनी सीमाओं को ।
मैं रोता अपनी सीमाओं को।
तू अपने दायरों में घिरा ।
मैं अपने दायरों में घिरा।
मिलना तो था हम दोनों को।
मगर अपने स्थान से न तू ही हिला।
और अपने स्थान से न ही मैं हिला ।
इस तरह हम दोनों दे देकर दुहाई
किस्मत की , रोते रहे, रोते रहे।
एक दिन तुझे तेरे अपने वातावरण में ,
कोई मुझ सा मिल ही दोस्त गया,
फिर क्या था, तू उसका हो गया।
फिर क्या था, तू उसका हो गया।
मेरी जिंदगी में सिर्फ़ तू ही था ,
और ता कयामत, तू ही रहा तू ही रहा ।