दायरे से बाहर
छीन के काँटो से गुलाब लाया हूँ
हुस्न का तेरे मैं जवाब लाया हूँ ।
देखो कहीं दरक न जाए आइना
बला की तुझपे मैं शबाब लाया हूँ।
भरेंगे चांद और सितारे अब आहें
साथ अपने’वो’माहताब लाया हूँ ।
जिसको पढ़ने की हसरत लिए था
इश्क़ की मै ‘वो’ किताब लाया हूँ ।
याद रखेगा ज़माना,ज़माने तलक
आशिक़ी में वो इन्क़लाब लाया हूँ ।
पेशानी पे रकीबों के बल पड़ गए
अजय उनके लिए अज़ाब लाया हूँ
-अजय प्रसाद