दायरे से बाहर
जल रहा है वतन ,आप गज़ल कह रहे हैं
सदमे में है ज़ेहन ,आप गज़ल कह रहे हैं ।
कुछ तो शर्म करें अपनी बेबसी पे आप
जख्मी है बदन ,आप गज़ल कह रहे हैं ।
जले घर , लूटी दुकानें, गई कितनी जानें
उजड़ गया चमन,आप गज़ल कह रहे हैं ।
कर ली खुलूस ने खुदकुशि खामोशी से
सहम गया अमन ,आप गज़ल कह रहे हैं ।
खौफज़दा चीखों में लाचारगी के दर्दोगम,
है दिल में दफ़न ,आप गज़ल कह रहे हैं ।
दोस्ती,भाईचारा,और भरोसे की लाशों ने
ओढ़ लिया कफ़न ,आप गज़ल कह रहे हैं ।
रास्ते,गलियाँ,घर बाज़ार सब वही है मगर
है कहाँ अपनापन आप गज़ल कह रहे हैं ।
क्या कहें अजय हालत मंदिरो,मस्जिदों की
सब हैं आज रेहन आप गज़ल कह रहे हैं
-अजय प्रसाद ( रेहन =बंधक )