दायरे से बाहर
1.
शायरों की महबूबा है गज़ल
आशिकों की दिलरुबा है गज़ल ।
अब क्या कहें कि क्या है गज़ल
बेजुबां शायरी की सदा है गज़ल ।
मीर,मोमिन,दाग,गालिब ही नहीं
कैफ़ि,दुष्यंत की दुआ है गज़ल ।
हुस्न की तारीफ,इश्क़ की नेमत
रकीबों के लिए बददुआ है गज़ल ।
बेबसों की बुलंद आवाज़ ही नहीं
इन्क़लाब की भी अदा है गज़ल ।
उर्दू की शान,अदब के लिए जान
मुशायरों के लिए शमा है गज़ल ।
हर दौर में निखर रही मुस्ल्सल
हर दौर की सच्ची सदा है गज़ल ।
औकात नहीं अजय तेरी, तू कहे
तेरे लिए तो इक बला है गज़ल ।
-अजय प्रसाद