दायरे से बाहर
चांद मुझ पर झल्ला गया
साथ छतपे मैं जो आ गया।
ज़रासी ज़ुल्फें क्या सहेज दी
बादलों को गुस्सा आ गया ।
शाम तो मुँह फुलाकर बैठी है
उनसे मिल कर जो आ गया।
फूल सारे के सारे फफक पड़े
काँटो ने जब गले लगा लिया।
तारे तो तिलमिला कर रह गए
चेहरे पे मेरे नूर जब आ गया
आ गई महफिल मुश्किल में
अजय जब कभी तू छा गया
-अजय प्रसाद