दायरे से बाहर ( आज़ाद गज़ल संग्रह)
ज़्ख्मों को कुरेदने का हुनर जो है
दुशमनी निभाने में बेहतर वो है ।
दे रक्खा जिसने दिल किराये पर
यारों इश्क़ में बेहद मोतबर वो है।
जब कर लिया किनारा करीने से
साथ डूबने से ज़रा बेहतर तो है।
ज़िंदगी कर रही इस्तेमाल जमकर
गफ़लत में मेरी ये सारी उमर जो है
भा गया है भटकना अब मुझे भी
मंज़िल न सही राह में पत्थर तो है
खंगालता है खामियां खाक़सार में
खुश हूँ मैं अजय मुझपे नज़र तो है।
-अजय प्रसाद