दायरा इंसानियत का ..
तुम अपने एहसासों को इतना तो जगाओ ,
के तुम किसी की दर्द भरी आहें सुन पाओ ।
आंखों के पैमाने में अश्कों का समुंदर इतना ,
की किसी के गम में दो आंसू तो बहाओ।
तुम जिंदगी में बहुत मसरूफ हो सकते हो ,
मगर किसी के साथ एक लम्हा तो बिताओ।
तुममें हुनर न हो किसी का दिल बहलाने का
किसी के लिए खुशी की वजह ही बन जाओ।
तुम इंसान हो इंसानियत ही तुम्हारा मजहब है ,
सबमें उसका नूर ये बात सभी को समझाओ।
गर खता करे कोई या बदमिजाजी ही कर दे,
माफ कर सको उसे इतना खुद में सब्र लाओ।
तुम्हें किसी का सहारा तो बनना ही होगा ना !
इसी लिए अपनी बाहों को मजबूत बनाओ।
देखो!कदम न बहकें तुम्हारे सच की राह पर,
मजबूत इरादों से अपने कदम आगे बढ़ाओ।
आवारा ख्यालों और सोच पर पाबंदी रहे,
अपने ज़हन में इल्म की शम्मा जलाओ।
बहुत कर ली नाफरमानियाँ अब तक तुमने ,
“अनु” कहे तुमसे अब तो इंसान बन जाओ।