दामिनियों के साथ इंसाफ करो …
दामिनी तो चली गई अपनी ,
अधूरी अभिलाषाओं के साथ।
इंसाफ तो हुआ मगर देर से ,
और वो भी आधा अधूरा उसके साथ।
क्योंकि उसका एक अपराधी ,
जीवित है क्या किया उसके साथ ?
नाबालिग था तो क्या दिमाग से तो न था,
उसने जो नृशंसता बरती दामिनी के साथ।
वो क्या मानवता विरोधी ना था ?
फिर क्यों मानवता बरती एक राक्षस के साथ।
वो भी बाकी पांचों अपराधियों की तरह ,
मृत्यु दण्ड का ही अधिकारी था।
उसे सिलाई मशीन देकर दिया रोजगार ,
और गुमनाम रखा गया हिफाजत को ।
क्या यह इंसाफ किया एक अबला के साथ !
मगर अब भी कौन सा यह सिलसिला खत्म हुआ है,
दामिनी का इंसाफ तो अधर में मगर ,
प्रतिपल है अबला के साथ ,मासूम नन्ही बच्चियों के
साथ हो रहा बलात्कार है।
और हमारा प्रशासन सो रहा है ।
दामिनी के साथ जो अमानवीय हादसा हुआ,
वो कौन सा बंद हो गया!
बल्कि अब तो बलात्कारियों ने ,इन चंडालों ने
यही तरीका कार्य व्यवहार में शामिल कर लिया है।
क्या कर रही है सरकार इनके साथ ?
इस अमानवीय कृत्य के लिए सजा भी ,
बहुत भयंकर होनी चाहिए।
जब यह मानव ही नही तो कैसी मानवता इनके साथ!
यह वहशी दरिंदे है इनकी के लिए ,
फांसी बल्कि फांसी से बढ़कर तड़पा तड़पा के ,
मारने की सजा निर्धारित करनी चाहिए ।
जब तक इनको नहीं मिलेगी ऐसी भयंकर सजा ,
तब तक कैसे अति उत्तम और सशक्त न्याय
होगा नारी जाति के साथ।