दामाद
” माँ सौरभ कल सुबह आफिस के काम से एक हफ्ते के लिए कानपुर आ रहे है । मै पेन्टु के स्कूल की वजह से नहीं आ पा रही हूँ, ध्यान रखना ।”
संगीता के फोन के बाद रमा परेशान सी हो गयी । अभी तक तो संगीता साथ आती थी तो सौरभ का ध्यान रखती थी और निश्चिंत रहती थी ।
इस बार ऐसा हो रहा है कि सौरभ अकेला आ रहा है । खैर रमा ने जल्दी से घर जमाना शुरू कर दिया अब अभी तक तो अकेली जान के लिए बस थोडा बहुत कर लिया , और हो गया । रमा बाजार गयी और सौरभ की पसंद की सब्जियां, पनीर और नाश्ते का सामान ले कर आई ।
इसी भागदौड़ और मानसिक तनाव के कारण शाम तक रमा की तबियत बिगड़ने लगी । रात दस बजे तक तो जैसे उसमें जान ही नही बची थी और वह निढ़ाल सी पलंग पर गिर गयी , बुखार से शरीर तपने लगा था ।
सौरभ के खाने पीने और रहने में नखरे भी बहुत थे वो तो संगीता थी जो उसे संभाले रहती थी । एक बार मन हुआ संगीता को बोल दे कि सौरभ कहीं होटल में रूक जाएं लेकिन फिर हिम्मत नहीं कर
सकी ।
रमा ने रात का खाना भी नही खाया और दरवाजे की कुंडी लगा कर सो गयी ।
सुबह सात बजे दरवाजे पर दस्तक होने पर किसी तरह उठ कर रमा ने दरवाजा खोला ।
सामने सौरभ खड़ा मुस्कुरा रहा था उसने रमा के पैर पड़े और रमा का हाथ पकड़ कर सहारा दिया , तभी उस लगा मम्मी को तो बुखार है ।
उसने नाराजगी बताते हुए कहा :
” मम्मी आपको तो बुखार है आपने बताया भी नहीं ।”
रमा ने कहा: ” कुछ बेटा जरा थकान सी हो गयी है आप नहा लें मै चाय नाश्ता ले कर आती हूँ ।”
सौरभ ने उनको पलंग पर लेटाते हुए कहा : ” मम्मी सबस पहले तो मैं डाक्टर को बुलाता हूँ आफिस जाने में तीन घंटे हैं , आपको समय से दवाई मिल जाएगी तो तबियत भी जल्दी ठीक हो जाऐगी। ”
रमा जो काम करने की कोशिश करती सौरभ रोक देता ।
रमा को दवाई दी थी जिससे उस आराम लग रहा था नींद सी लग गयी थी
इब बीच सौरभ ने खाना बगैरह बना कर सफाई भी कर ली थी
ग्यारह बजे सौरभ तैयार हो गया और रमा के पास आ कर बोला :
” मम्मी आप कहे तो मैं छुट्टी ले लेता हूँ। ”
रमा ने मना कर दिया तब खाना परोस कर मम्मी को खिलाया और दवाई के बारे में बता कर खुद ही अपने हाथ से खाना ले और खा कर आफिस चला गया ।
दोपहर को संगीता का फोन
आया । रमा की आँखो से आंसू बह रहे थे अंर आवाज रुंध रही थी । संगीता को लगा सौरभ ने वहाँ दामादपना दिखाया होगा । उसे गुस्सा आ रहा था । वह सोच रही थी ” हम ससुराल में जरा भी बहूपना दिखाये तो इन्हें सहन नहीं होता और ये ।”
रमा ने अपने संभालते हुए अपनी बीमारी और सौरभ की सब बाते बता दी ।
रमा कह रही थी :
” बेटी , सौरभ दामाद ही नहीं, बेटे से भी बढ़कर है । आज मेरी सौरभ के लिए धारणाएं बदल
गयी हैं ।”
समाज में आज बदलाव की बयार चल रही है । काश ऐसा ही होते रहे और दामाद बेटों का फर्क खत्म हो जाए ।
अभी तक सौरभ पर गुस्सा करने वाली संगीता को सौरभ पर प्यार आ रहा था ।
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल