— दान और भगवान् –
एक हैं दगडू सेठ, जिनका अपना कारोबार है हलवाई का, और वो पुणे के रहने वाले हैं, उन्होंने गणपति जी पर 6 करोड़ का – 5 किलो सोने का मुकुट चढ़ा कर वाह वही लूटी समझ सकते हैं, कि उन्होंने आज तक इतना पैसा जोड़ा रखा होगा, कि प्रभु जी को खुश किया जाए, ताकि आने वाली दुनिया उनके गुणगान करे !!
बात यह तो समझ में आ रही है, कि आपने सोने के मुक्त चढ़ा दिया और गणपति जी को खुश कर दिया , क्या आपने पैसे की बर्बादी नही की ? क्या इतनी साड़ी धन दौलत से आप कोई और धर्मार्थ का काम नही कर सकते थे, आपने कितने यतन कर के सोने के मुकुट को बनवाया, फिर उस की रक्षा भी की होगी , और गणेश जी को समर्पित करने के लिए मशकात भी की होगी , अगर आप कुछ अलग से करते तो, आपको दुनिया युगों युगों तक याद करती, आप कोई अस्पताल बनवा देते, आप कोई धर्मशाला बनवा देते, आप किसी की कन्या (या कन्याओं) का विवाह करवा देते, भगवान् को आप क्या अर्पित कर सकते हो, जो आपने अपने इस मुकुट का सरे आम दिखावा कर दिया !
भगवान् – भाव के भूखे हैं, हम सब भगवान्भ को भोग लगाते हैं, वो खाते कहाँ हैं, लौट के हम सब को ही खाना पड़ता है भगवान् को देने की इंसान की औकात नही है कि वो ज्यादा से ज्यादा भेंट कर सके, भगवान् देते हैं , लेते नही हैं, आप जैसे ही ज्यादा बुध्ही वाले लोग, शिव जी पर दूध की बरसात कर देते हैं , जो दूध सीधा नाले में जाता है, उस से किसी के बच्चे की भूख नही मिटती है , सोने का मुकुट चढ़ा देने से आपको कुछ समय के लिए शान्ति तो मिली होगी, पर असली शान्ति तब मिलती, जब आप मेरे लिखे हुए धर्मार्थ के काम करते, न जाने कितने लोगों को सहारा मिलता, न जाने कितनी आत्माओं के द्वारा आपको दुआ मिलती !!हर आत्मा से आपके किये गए कामों के लिए चर्चा होती !!
काम करो इंसानियत के , तो दुनिया गाये गुणगान
पल में चोरी हो जाए, मंदिर से अब भगवान्
चांदी , सोना, हीरे, जवाहरात सब हैं बस बदनाम
आत्मा जिस को दुआ दे दे, वही है यहाँ इंसान !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ