दाद ओ तहसीन ओ सताइश न पज़ीराई को
ग़ज़ल
दाद-ओ-तहसीन-ओ-सताइश¹ न पज़ीराई² को
कोई आया न मेरी हौसला-अफ़जाई³ को
देख तो लूं मैं ज़रा पैकर-ए-रानाई⁴ को
छीन लेना तू भले बाद में बीनाई⁵ को
जो भी रौशन थे बुझा कर सब उमीदों के चराग़
सो गये आज भी हम ओढ़ के तन्हाई⁶ को
रोज़ ही ज़ुल्मो-सितम और बढ़ा देता है
नापता है वो मेरे ज़ब्त⁷ की गहराई को
मेरे सीने के सभी ज़ख़्म उधड़ जाते हैं
याद करता हूँ कभी जो तेरी अँगड़ाई को
दोस्त भी अब सफ़-ए-दुश्मन⁸ में नज़र आते हैं
जब से होठों पे सजा रक्खा है सच्चाई को
लफ़्ज़ों के फूलों में मफ़हूम⁹ की ख़ुशबू ही नहीं
कैसे कह दूँ मैं ग़ज़ल क़ाफ़िया-पैमाई¹⁰ को
उसने ही मेरा बनाया है तमाशा ऐ ‘अनीस’
मान बैठा था फ़िदाई¹¹ मैं तमाशाई¹² को
– अनीस शाह ‘अनीस ‘
1.प्रशंसा 2.स्वीकृति 3. उत्साहवर्धन 4. सौन्दर्य की आकृति 5. दृष्टि 6. अकेलापन 7. धैर्य 8. दुश्मन की पंक्ति 9. भाव 10. तुकबन्दी 11. जान न्योछावर करने वाला 12. तमाशा देखने दिखाने वाला