दादी के बर्तन
बड़े हाकिम साहब की मां का निधन हो गया था। तेरहवीं के मद्देनजर घर में सफाई चल रही थी। इस बीच चंद्र पुराने बर्तन नजर आए, जो हाकिम साहब की मां को खाना खिलाने के काम आते थे। यानी बूढ़ी सास के बर्तन बहू ने अलग कर दिए थे। सफाई के दौरान मां ने बेटे से कहा- ”अब इन बर्तनों को फेंक दो। ”नहीं फेको मत, आगे फिर काम आ जाएंगे।” हाकिम साहब के बेटे ने जवाब दिया। घर में बर्तनों की क्या कमी है, जो आगे काम आएंग?े मां ने बेटे से सवाल किया। ”मम्मी एक दिन आपको भी तो दादी बनना है।” बेटे की बात सुनकर मां की आवाज होटों के पीछे कैद होकर रह गई थी।
© अरशद रसूल