दाता
दाता
◆◆◆◆
सत्ता का नशा
आदमी को अंधा बना देता है
एक आम आदमी को झुकाने के लिए
पूरा तंत्र लगा देता है।
कुर्सी के मद में
इतना मगरूर हो जाता है कि
वह ये भूल जाता है कि
वही आम आदमी ही
उस कुर्सी का दाता है।
पर सत्ता के घमण्डियों को
यह याद कहाँ रहता है कि
दाता सिर्फ़ देता ही नहीं
छीन भी लेता है।
?सुधीर श्रीवास्तव