दाढ़ी वाले दोहे
दाढ़ी वाले दोहे
दाढ़ी तेरी बढ़ गई, कैसा तेरा हाल।
दीवानों सा तू लगे, कैसा है जंजाल।।
दाढ़ी तेरी सितमगर, बड़ी चार सौ बीस।
दमघोटू सी लग रही, रही सभी को पीस।।
दाढ़ी में तिनका कहें, आगे-पीछे लोग।
तुमको शायद है लगा, नेह मोह का रोग।।
दाढ़ी लंबी हो भले, लगता नहीं फकीर।
घायल सबको ही करे, जुबां बनी शमशीर।।
दाढ़ी तेरी ने किए, कितने मुद्दे गौण।
अंगूठा जन का कटा, दाढ़ी तेरी द्रौण।।
दाढ़ी तेरी अजब है, करती कितने खेल।
तेरी दाढ़ी सामने, सभी कायदे फेल।।
सिल्ला भी है लिख रहा, अपनी पीड़ा रोज।
पीड़ा से राहत मिले, राह रहा है खोज।।
-विनोद सिल्ला