दांव पाकर कर रहे हैं बदजुबानी आज फिर
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छंद -गीतिका (मात्रिक मापनीयक्त)
याद आता है वो बचपन शादमानी आज फिर।
बन रही है खूबसूरत सी कहानी आज फिर।।(१)
फूल बनकर खिल रही है ज़िंदगी कुछ इस तरह,
वक्त पाकर खिल उठी मेरी जवानी आज फ़िर।(२)
वो बहुत रूठे मगर थे एक छोटी बात पर,
देखकर वो अब हवाएं है दिवानी आज फिर।।(३)
थे बहुत ईमान वाले सभ्यता के दूत थे,
दाॅव पाकर कर रहे हैं बदजुबानी आज फ़िर।(४)
देखकर के कारवां को है बहुत गाफिल ‘अटल’,
अब समझ आता नहीं कुछ बदगुमानी आज फिर।।(५)