द़ुआ कर
द़ुआ कर
गर आब-ए-तल्ख़
हमारा जो टपका
फ़साना नारास्ती का तेरा
हो कर कहीं फ़ुगां
ग़ैहान में ना फैले
जबीं पर मेरे ना उभरे
नाआश्ना होने के किस्से
अतुल “कृष्ण”
द़ुआ कर
गर आब-ए-तल्ख़
हमारा जो टपका
फ़साना नारास्ती का तेरा
हो कर कहीं फ़ुगां
ग़ैहान में ना फैले
जबीं पर मेरे ना उभरे
नाआश्ना होने के किस्से
अतुल “कृष्ण”