दहेज़ (तेवरी)
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चलो हटो नामुरादों कुछ हमें भी
दहेज के नाम कह लेने दो,
एक बाप को बेटी पैदा करने का
कुछ तो अपमान सह लेने दो।
बहुत खुश था बेटी पैदा कर वह,
आज उस खुशी के नाम ही सही
कुछ तो आंशु बह लेने दो।
बहुत इतराया था बेटी पैदा कर
वह एक दिन इस समाज में,
बेटी ब्याहने का दर्द क्या है
जरा उसे भी जमाने को कह लेने दो।
बहुत प्रशन्न था पढा कर बिटिया को
किन्तु बीना दहेज दुल्हा ढूंढने का दर्द
आज जरा उसे भी सह लेने दो।
हम क्यो इतराये इतना बेटा पैदा कर
जो खर्च किया बेटे पे दहेज़ के नाम का,
अब हमें वह खुन के रूप मह लेने दो।
वह बेटी का बाप है कोई सम्मान नहीं
हमने छूट दे दी उसे व्यथा सुनाने की,
तुम भी उसे दहेज़ की व्यथा कह लेने दो।
माना वह गरीब है किन्तु अपाहिज नहीं,
बेटी का बाप है प्रताड़ना सह लेने दो।
क्या वह अनभिज्ञ था इस प्रथा से,
गल्ती की रक्त मिश्रित अश्रु बह लेने दो।
किन्तु एक बात याद रखना बेटे वालों
कभी बेटियां भुले से भी पैदा ना करना
वर्ना तुम्हारा भी हाले अंजाम यहीं होगा,
यार हमें रोको नहीं, हमें भी कह लेने दो।।
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पं. संजीव शुक्ल सचिन