Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
6 Sep 2021 · 5 min read

— दहेज़ की आग —

कितना अच्छा लगता है, उन लोगों को, जिन की फितरत में ही भरा हुआ है यह नाम – दहेज़ – आये दिन की ख़बरों में देखने , सुनने को मिल रहा है, कि दहेज़ की खातिर किसी की प्यारी , नाजों से पाली पोसी, अपने अरमानो को सजोती हुई, अपने बाबुल के घर को छोड़ कर, ससुराल का रूख करती हुई बेटी दहेज़ की बलि चढ़ा दी गयी ! अब इस को समझोता कह लो, या इस को कह दो, कि ससुराल वालों के मुंह को भरने के लिए, किसी बाप ने अपनी बेटी के सुख की खातिर न जाने कहाँ कहाँ से पैसा एकत्रित कर के दहेज़ नामक राक्षस के साथ उस को विदा कर दिया , ताकि कोई उस की लाडली को ससुराल वाले कुछ कहे न , उस को प्यार और इज्जत के साथ रखे, उस के अरमानो का कोई गला न दबाये, इस लिए दहेज़ देकर ससुराल के लिए भेज दिया !!

परंतू , कुछ समय अच्छे से बीता नही, कि खबर आने लग जाती है, कि उनकी बेटी को दहेज़ के लिए फिर से कुछ नया लाने के लिए प्रताड़ित किया जाने लगा है, उस पर ऐसी ऐसी प्रताड़ना दी जाने लगती है, कि उस को लगता है, मेरी जिन्दगी बर्बाद होने जा रही है, वो जानती है, पर न जाने क्यूं ? वो अपने पिता की खातिर सब कुछ सहने के लिए तैयार हो जाती है ! मेरे ख्याल से ससुराल पक्ष की हर मांग को बेटी के पिता ने भरपूर कोशिश के साथ पूरा कर के ही बेटी को विदा किया होगा ! उस के बावजूद भी प्रताड़ना दी जाए, तो यह किसी को भी मंजूर नही हो सकता ! खुद जिस ने अपने पापा को हर मेहनत करते हुए देखा होगा, जिस ने दिन रात एक कर के बेटी को विदा करने के लिए हर संभव प्रयास किया होगा, अपनी बेटी के लिए कोई कमी न रह जाए, यहाँ तक सोच के उस पिता ने दहेज़ के लिए हर चीज मंगवा ली होगी, बरातिओं की खातिर जितना अच्छे से अच्छा हो सका होगा, वो सब बनवाया होगा ! मैं समझता हूँ, कि अपनी लाडली संतान को विदा करने से पहले ही हर पिता , अपने पूरे दम ख़म से सब कुछ कर डालता है, वो चाहता है, उस की लाडली खुश रहे, जैसा कि उस ने अपने घर पर उस को रखा था !

पर, उस के बावजूद, दहेज़ की खातिर न जाने कितने ही घर उजड गए, कितनी बेटियाँ आग के हवाले कर दी गयी, पहले तो उस पर पूरे जोर शोर के साथ मार पिटाई की, ताकि वो बेटी अपने पिता से उनकी आगे वाली मांगों को पूरा करती रहे, जब उस की सामर्थ्य ने जवाब दे दिया तो उस को जेहर दे दिया, आगे के हवाले कर दिया, या यह कहो उस को मौत के घाट उतार के दम लिया ! आखिर क्यूं ? क्या हक़ बनता है, कि किसी की बेटी के साथ इतने अत्याचार करोगे, तो यह कुछ सही लक्षण हैं, यह क्या अच्छे घर के संस्कार है, क्या इस घर में किसी महिला ने जन्म नही लिया, क्या उस महिला ने (सास) (ननद) यह भी नही समझा कि हम दुसरे के घर की बेटी को किस तरह से व्यवहार कर रहे हैं, क्या उन की समझ से बाहर था, कि उनके घर में बहु बेटी बनकर आयी है या बहु ही बनकर रहेगी, पहले तो खूब कहा जाता है,कि हम बेटी बनाकर रखेंगे, उस के बाद क्या हो जाता है, जो उस के साथ रात दिन अत्याचार किया जाता है !उस वक्त अगर उनकी बेटी होती तो क्या उस को भी आग के हवाले कर सकते थे !

जब तक दहेज का लेना देना बंद नही होगा, तब तक यह अपना विकराल रूप हमेशां लेता रहेगा, क्या जो लड़के दहेज़ लेकर काम करते हैं, वो क्या नपुंसक है , या हाथों पैरों से लूले लंगड़े हैं, उस के अंदर इतनी भी शक्ति नही, कि किसी की बेटी के साथ शादी कर रहे हो तो उसका पालन पोषण अच्छे से कर सकोगे, अगर नही कर सकते हो तो क्यूं सात फेरे अग्नि के सामने लेते हो, जगत के सामने, समाज के सामने क्यूं दिखावा करते हो, क्यूं इतना बन ठन कर दूल्हा बनकर, घोड़ी, बग्गी, बारात के साथ लड़की वालों के घर दुल्हन लेने के लिए आ धमकते हो, इस का साफ़ मतलब यही है, कि उस लड़के की औकात तो होती नही, पर चला आता है, दुल्हन लेने, ताकि अच्छा ख़ासा दहेज़ मिल जाए , जिन्दगी की गाडी आराम से चल जायेगी — और– यहाँ एक कड़वा शब्द यह भी कहूँगा, कि वो परिवार भी उतना ही दोषी है, जितना दहेज़ को देने वाला, क्यूं बढ़ावा देते हो, क्या तुम्हारी लड़की में कोई कमी है, क्या वो अपंग है, क्या वो आगे चलकर कुछ कर नही सकेगी, जिस के गले बाधने के लिए आपने दूल्हा खोजा है, उस की समार्थ्य कितनी है, क्या वो उस को वो सब देगा, जिस की आपने इच्छा मन में संजो रखी थी, अगर वो किसी काबिल नही था, तो आपने किस पनाह पर अपनी बेटी को उस के साथ विदा कर दिया ! कहीं न कहीं वो बाबुल भी दोषी है, क्यूं नही करते आप बिना दहेज़ की शादी, क्यूं बड़े बड़े सपने संजो लेते हो अपनी बेटियों के लिए , आखिर कमाना , खाना, रहना , पहनावा, सोना ही तो जिन्दगी है !! क्यूं ऊँचे ख्वाब देखते हो, बाहर निकलो उस दुनिया से जहाँ बड़े बड़े सपने दहेज़ के लालच वालों के साथ आपने भी बुन रखे हैं !!

आज कहीं जरा सी घटना हो जाए तो दूर तक उस की आवाज चली जाती है, फिर यह दहेज़ से जिन की बेटी संसार छोड़ गयी , उस की पुकार को कौन सुनेगा , कब तक यह अत्याचार होते रहेंगे , कब जागेंगी सरकारे, कब होगी इन जैसे दानवों पर कठोर से कठोर कार्यवाही , कब बुझेगी आग , इस दहेज़ की, कब लोग यह देना बंद करेंगे, कब तक आखिर यह सब चलता रहेगा !! देश में दहेज़ के लिए कड़े से कड़ा कानून जब तक नही बन जाता, तब तक ऐसी घटनाएं घटित होती रहेंगे, समाज की इस गन्दी मानसिकता को मिलकर ही दूर करना होगा, लालच से दूर रहकर , किसी तरह का लोभ मन में न रखकर परिवार को बनाया जाएगा तो यह प्रथा अपने आप खत्म हो जायेगी !!

दुआ यही करता हूँ, किसी की भी बेटी दहेज़ के लिए प्रताड़ित न की जाए, सब के अपने सपने होते हैं, उन को भी खुली हवा में साँस लेने दो, उनके हर अरमान को पूरा करने के लिए, ससुराल पक्ष को सहयोग देना चाहिए ! खुद उस लड़के को, जिस ने इस पवित्र बंधन को अग्नि के सामने गवाही देकर परिवार को आगे बढाने की कसम खाई थी !!

अंत में यही कहूँगा , जिओ और जीने दो, प्यार मोहोब्बत से परिवार को जिन्दगी की राह में कदम से कदम बढाते हुए , हर चुनोती को धैर्य पूर्वक सामना करते हुए , अपने हर कर्तव्य का पालन करते हुए, अपने बड़ों का सम्मान करते हुए , मानमर्यादा, संस्कार सहित जिन्दगी को जिओ !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Language: Hindi
Tag: लेख
3 Likes · 1 Comment · 498 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from गायक - लेखक अजीत कुमार तलवार
View all
You may also like:
धैर्य और साहस
धैर्य और साहस
ओंकार मिश्र
भाव में,भाषा में थोड़ा सा चयन कर लें
भाव में,भाषा में थोड़ा सा चयन कर लें
Shweta Soni
जीवन की विषम परिस्थितियों
जीवन की विषम परिस्थितियों
Dr.Rashmi Mishra
मैं शायर भी हूँ,
मैं शायर भी हूँ,
Dr. Man Mohan Krishna
।।सावन म वैशाख नजर आवत हे।।
।।सावन म वैशाख नजर आवत हे।।
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
कैसे चला जाऊ तुम्हारे रास्ते से ऐ जिंदगी
कैसे चला जाऊ तुम्हारे रास्ते से ऐ जिंदगी
देवराज यादव
कविता
कविता
Shyam Pandey
तुमको वो पा लेगा इतनी आसानी से
तुमको वो पा लेगा इतनी आसानी से
Keshav kishor Kumar
जिस घर में---
जिस घर में---
लक्ष्मी सिंह
आरजू
आरजू
Kanchan Khanna
2731.*पूर्णिका*
2731.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
क्या? किसी का भी सगा, कभी हुआ ज़माना है।
क्या? किसी का भी सगा, कभी हुआ ज़माना है।
Neelam Sharma
15- दोहे
15- दोहे
Ajay Kumar Vimal
पुरुष_विशेष
पुरुष_विशेष
पूर्वार्थ
मैं अपने लिए नहीं अपनों के लिए जीता हूं मेरी एक ख्वाहिश है क
मैं अपने लिए नहीं अपनों के लिए जीता हूं मेरी एक ख्वाहिश है क
Ranjeet kumar patre
■ आज की परिभाषा याद कर लें। प्रतियोगी परीक्षा में काम आएगी।
■ आज की परिभाषा याद कर लें। प्रतियोगी परीक्षा में काम आएगी।
*प्रणय प्रभात*
राम नाम
राम नाम
पंकज प्रियम
*सूरत चाहे जैसी भी हो, पर मुस्काऍं होली में 【 हिंदी गजल/ गीत
*सूरत चाहे जैसी भी हो, पर मुस्काऍं होली में 【 हिंदी गजल/ गीत
Ravi Prakash
इस संसार में क्या शुभ है और क्या अशुभ है
इस संसार में क्या शुभ है और क्या अशुभ है
शेखर सिंह
हरषे धरती बरसे मेघा...
हरषे धरती बरसे मेघा...
Harminder Kaur
एक अच्छी हीलर, उपचारक होती हैं स्त्रियां
एक अच्छी हीलर, उपचारक होती हैं स्त्रियां
Manu Vashistha
सत्य, अहिंसा, त्याग, तप, दान, दया की खान।
सत्य, अहिंसा, त्याग, तप, दान, दया की खान।
जगदीश शर्मा सहज
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
"ढाई अक्षर प्रेम के"
Ekta chitrangini
आओ,
आओ,
हिमांशु Kulshrestha
झूठी शान
झूठी शान
Dr. Pradeep Kumar Sharma
आज नए रंगों से तूने घर अपना सजाया है।
आज नए रंगों से तूने घर अपना सजाया है।
Manisha Manjari
ताटंक कुकुभ लावणी छंद और विधाएँ
ताटंक कुकुभ लावणी छंद और विधाएँ
Subhash Singhai
*बहू- बेटी- तलाक*
*बहू- बेटी- तलाक*
Radhakishan R. Mundhra
जो दूरियां हैं दिल की छिपाओगे कब तलक।
जो दूरियां हैं दिल की छिपाओगे कब तलक।
सत्य कुमार प्रेमी
Loading...