दहेज
जब आसमान से परी सी आई ।
सब ने मिलकर खुशी मनाई ।
बेटी ने घर में जन्म लिया था ।
अब एक बहन थी एक था भाई ।
बाप गरीब किसान था ।
पर बच्चों का भगवान था ।
माँ भी थोड़ी थी लाचार ।
खुश दिखती पर थी बीमार।
बहन की थी शादी करवानी ।
दहेज न देना मन में ठानी ।
सारे जग से लड़ता रहा ।
भाई बड़ा था स्वाभिमानी ।
बिन माँग के रिश्ता तय किया था ।
पर जल्दी ही सब बदल गया था ।
जब सारी फरमाईश माननी पड़ी ।
अन्दर से सब कुछ टूट गया था ।
अरमान सारे चूर हो गए ।
वक्त भी जैसे रुक गया था ।
वो स्वाभिमान तो खड़ा रहा ।
भाई कदमों में झुक गया था ।
लड़के वाले हर चाल जानते थे ।
भाई को झुकाना हक मानते थे ।
कोई न था जो मर्ज को समझता ।
भाई होने के दर्द को समझता ।:- सागर