दहेज में डिग्री
“दहेज में डिग्री”
जनवरी के महीने में बाहर बैठकर धूप सेंकते हुए गुरुदेव ने जब अखबार उठाया और खोलकर देखा तो उसमें सी. पी.एम. टी का रिजल्ट छपा था।
गुरुदेव ने पास बैठे हुए अपने शिष्य अरविंद, जो उनके अंडर में पी-एच.डी. कर रहा था,से कहा,सी. पी. एम. टी. का रिजल्ट निकला है,देखूँ क्या?मयंक ने भी तो परीक्षा दी था।मयंक उनका भाँजा था,जो गाँव में रहता था और उसके पिता जी का निधन हो चुका था। वह गाँव से लखनऊ आगे की पढ़ाई के सिलसिले में आया था।
अरविंद ने कहा, अवश्य गुरुदेव ।
उन्होंने डरते हुए बी.एम.एस. से उसका रोल नंबर देखना शुरू किया पर जब कहीं रोल नंबर नहीं मिला तो उन्होंने एक बार फिर अरविंद से कहा- एम. बी. बी. एस. में भी देख लें क्या?
अरविंद बोला ,क्यों नहीं गुरू जी।जब देख ही रहे हैं तो एम.बी.बी.एस में भी देख लीजिए।क्या पता सलेक्शन हो ही गया हो।
गुरुदेव ने एक बार फिर नीचे से रोल नंबर देखना शुरू किया। कई कालेजों की सूची देखने के बाद जब उन्होंने गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में देखा तो वहाँ पर उसका नाम था।
गुरुदेव अत्यंत प्रसन्न हुए फिर थोड़ी देर बाद उदास हो गए।
अरविंद ने पूछा,क्या हुआ गुरू जी, आप तो चिंतित दिखाई दे रहे हैं।
गुरुदेव बोले, अरविंद मैं इसका एडमिशन करा दूंगा और साल दो साल फीस भी भर दूंगा पर पूरे एम.बी.बी.एस कोर्स का खर्च वहन करना अपने बस की बात नहीं।अपनी बात आगे बढ़ाते हुए वे बोले,कोई ऐसा व्यक्ति मिल जाए जो अपनी बेटी से इसकी शादी कर ले और दहेज में इसे एम बी बी एस करा दे।
अरविंद भी सोच में पड़ गया क्योंकि उसे भी ये बात पता थी कि मयंक के पिता जी नहीं हैं और बिना धन के एम बी बी एस जैसे कोर्स की पढ़ाई-लिखाई संभव नहीं।
अरविंद ने गुरू जी से कहा,गुरुदेव आप ही कुछ कर सकते हैं।
डाॅ बिपिन पाण्डेय