दहेज (भोजपुरी लघुकथा)
भोजपुरी
दिनांक:- १७/०६/२०२१
विधा:- लघुकथा
दहेज
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रामजतन आज अपना बड़का लइकवा के देखउवन के इंतिजारी में कबो चउकी पर बइठऽ तारे तऽ कबो रहिया में खाड़ होके एकटक जेने से देखउवा लोग आवे वाला बाड़न ओहरे देखऽ ताड़न।
इंतजार के घड़ी कइसहूं खतम भइल , देखउवा दुआर पर अइलन चाय चूह चलल, नास्ता पानी भइल येह बीच सबका मुंह पऽ खुसहाली रहल।
बात आगे बढ़ल, बरतूहार लोग लइका के बोला के पूछताछ करे लागल लोग। लइका तऽ सुबहिते रहे पसंद आ गइल।
अब बात लेन- देन के चले लागल। लइकी के बाबूजी एक कोरिया बइठल रहलन, बस उनका दिमाग में इहे घुमत रहे कि ना जाने दहेज पटी कि ना पटी?
लइकी के मामा जे अगुआ रहलन ऊ रामजतन से पुछे लगलन।
इयार जी हमनी के सबकुछ तऽ देखिये लिहनी जा। सब ठीक बा लइको नीमन बा बाकिर बिआह शादी में जवन सबसे जरूरी हऽ ऊ हऽ दहेज।
त बताई रऊआ का कहऽ तानी, का मांग बा?
रामजतन लइकी के बाप के एक नजर बड़ा गौर से देखलन , कुछ देर चुपचाप रहले के बाद कहलन।
देखिं इयार जी हम अपना जिनगी में बहुत कमइले बानी बाकिर एक बेकत बिना ई घर घर नइखे लागत, ई भूत के डेरा लागता।
हमरा दहेज में बस घर के घर बनावे वाली लछमी चाहीं।
येतना सुनते ही लइकी के बाबूजी के अखिया लोरा गइल। ऊ सोचे लगलन का आजु के येह युग में अबहियों येह तरे के लोग बा?
✍️ पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
#घोषणा :- ई रचना स्वरचित, स्वप्रमाणित बा