दहेज प्रथा
******** दहेज – प्रथा ********
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दहेज – प्रथा बुरी बहुत बुराई है।
सुन कर सूखी आँखें भर आईं हैं।
सुबह से देर रात अथक काम करे,
दो पल भी बैठ न कभी विराम करे,
होती कभी कहीं नहीं बड़ाई है।
सुन कर सुखी आँखे भर आईं हैं।
बाबुल की बिटिया रानी प्यारी है,
बहन – भाइयों की बड़ी दुलारी है,
माँ नम आँखों से देती विदाई है।
सुन कर सूखी आँखे भर आईं हैं।
आग की तेज लपटों में जल जाती,,
किसी की बहू-बेटी बलि चढ़ जाती,
दहेज लोभ की भूख न मिट पाई है।
सुन कर सुखी आँखें भर आईं हैं।
सास भी कभी बहु थी है रोकती,
छोटी – छोटी बात पर है टोकती,
लालच वश बहु सूली चढ़ाई है।
सुन कर सूखी आँखे भर आईं है।
मायके का घर आंगन छोड़ आई,
ससुराल सदा समझे बहु पराई,
दहेज में पूछे बहु क्या लाई है।
सुन कर सूखी आँखें भर आईं है।
मनसीरत ने तन – मन वार दिया,
मुंह मांगा महंगा सामान दिया,
फिर भी दहेज की भेंट चढ़ाई है।
सुन कर सूखी आँखें भर आईं हैं।
दहेज – प्रथा बुरी बहुत बुराई है।
सुन कर सूखी ऑंखें भर आईं हैं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)