दहलीज
लघुकथा ” दहलीज ”
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कई वर्षों पश्चात घर की ” दहलीज ” पर कदम रखते ही राजू सर से पांव तक कांप गया…. आंसुओ का समंदर जो अब तक ठहरा हुआ था… हिलोरें मारने लगा… तट बांध तोड़ने को आतूर हो गया।जैसे ही अंदर निगाहें गई… बांध टूट ही गया ।
सामने ही रिश्तेदारों से घिरी “मां” । व बहुत से लोगों से घिरे पापा का पार्थिव शरीर रखा था।शान्त…. बिल्कुल शांत….।राजू पैरों में गिर पड़ा … मुझे माफ कर दो पापा… मुझे माफ कर दो …..व्यथित मां भी उसे गले लगा कर सांत्वना देने लगी…. सब कुछ ख़त्म हो गया बेटा …सब कुछ…।
गमगीन माहौल में किसी तरह अंतिम संस्कार निपटने के पश्चात सभी अपने-अपने घरों को लौट गये । सिर्फ मां और राजू ही एक दूसरे को सांत्वना देते रह गये ।तब मां ने पापा का खत राजू के हाथ में रख दिया। लिखा था …बेटा तुम्हे गए कई बरस हो गए…तुमने कभी वापस इस दहलीज पर कदम नहीं रखा…पता नहीं…. मेरे जीते-जी वापस आओगे भी… या नहीं । जब ये खत तुम्हे मिले शायद मैं न रहुं ।मेरे बाद तुम्हारी मां अकेले रह जाएगी । हो सके तो उसका ख्याल रखना..।
पश्चाताप के थपेड़े राजू के चेहरे पर नजर आ रहे थे….अपनी जिद और गलत सोहबत ने उसे घर से बहुत दूर कर दिया था।वापस आता भी तो किस मुंह से…।
मां…चलने की तैयारी करो अब तुम यहां अकेले नहीं रहोगी।मां की ममता कराह उठी पर कहा …उनके जीते-जी ये दहलीज नहीं छुटी तो उनके जाने के बाद कैसे छोड़ दूं बेटा अब तो आखरी सांस भी इसी घर से निकलेगी ।पर मुझे व तेरे पापा को भी तुझसे कोई शिकायत नहीं है …. तू जा….। इतनी ज्यादतियों के बाद भी इन्हें कोई शिकायत नहीं.. क्या मां बाप ऐसे ही होते हैं….?
धीरे-धीरे पश्चाताप की ग्लानि एक दृढ़ निश्चय में बदलने लगी…दिल के फैसले की दृढ़ता चेहरे पर नजर आ ने लगी। मां ….अब मैं भी .…इस दहलीज से …कभी …दूर नहीं जाउंगा….हमेशा तेरे पास रहुंगा मां..की आंखों से भी आंसू बहने लगे….. पर राजू समझ नहीं पाया की वे आंसू पापा के जाने के थे ..या उसके लौट आने के…..?