दहन
ये धुआँ सा कहाँ से उठता है ?
फ़िज़ा में ये सुगबुगाहट कैसी है ?
लगता है कहीं कुछ जल रहा है ,
माहौल में ये चुप्पी कैसी तारी है ?
लगता है चुप रहना ‘अवाम की मजबूरी है ,
हर शख्स दिल में एक दहन लिए जी रहा है ,
बेचैन दिल का ग़ुबार लब़ों तक आने को मचल रहा है ।