दस्तूर
झाँक पड़ीं यादें बीती-सी,
खुली अचानक जब मन-खिड़की ।
कोलाहल, आँगन की गुनगुन,
अम्मा की, पायल की रुनझुन ।
मिली पुरानी अपनी कापी,
दौड़ पड़ीं रातें जगराती ।
हाँफीं दिखीं पड़ोसन काकी,
चुपके उड़ आयीं कुछ पाती ।
ले आई स्मृति बाबा को,
ढेरों बच्चों को, चाचा को ।
एक विदाई फिर दिखती-सी,
कैसे खुल आई मन-खिड़की ।
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ