दस्तूर
वक्त ने की हमसे बेवफाई ,
कुदरत को शायद यही मंजूर था।
मगर तुम्हारी नज़र क्यों बदल गई,
क्या यही तुम्हारी मुहोबत का दस्तूर था।
वक्त ने की हमसे बेवफाई ,
कुदरत को शायद यही मंजूर था।
मगर तुम्हारी नज़र क्यों बदल गई,
क्या यही तुम्हारी मुहोबत का दस्तूर था।