दस्तक
दस्तक
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दस्तक अक्सर हुआ करती हैं !
कभी अचानक हुई दस्तक हमें हैरान कर देती हैं और कभी-कभी पूरा जीवन एक दस्तक के इंतज़ार में ही कट जाता है!
कई बार कोई जानी पहचानी सी दस्तक होने पर कोई अजनबी निकलता है और कभी अनजानी दस्तक वाला पिछले जन्मों का बिछड़ा साथी निकलता है!
बहुत बार तो आहट ही इतनी जानी पहचानी लगती है दस्तक होने का इंतज़ार किए बगैर ही दरवाज़ा खोलने की जल्दी रहती है ! कभी-कभी अपनी ही धुन में मगन हम, किसी बेहद करीबी की दस्तक सुन नहीं पाते और फिर तमाम उम्र उसके लौट जाने का मलाल और ताउम्र फिर उसी दस्तक का इंतज़ार रहता है लेकिन वह दोबारा नहीं होती !
कभी-कभी तो कहीं दस्तक देने से पहले सौ दफा सोचना पड़ता है वहीं किसी जगह अनजाने में ही बिन सोचे समझे बरबस ही दस्तक देने का जी कर जाता है!
आजकल दरवाजे की दस्तक से ज्यादा व्हाट्सएप , फेसबुक , फोन काल के नोटिफिकेशन की बीप की दस्तक अधिक सुनाई पड़ती है !
घर के दरवाजे की घंटी या दस्तक न जाने क्यों अब कम हो चली है !
बस , दिल के दरवाजे पर कोई दस्तक दे तो खोल ज़रूर दीजिएगा , वो आए न आए उसकी मर्जी, कम से कम आपको तो कोई मलाल नही रहेगा कि दरवाजा नहीं खोल पाए !
लेकिन हां , कोई खास जब दरवाजे पर आपकी आहट को ही न पहचान पाए , तब भूलकर भी वहां दस्तक मत दीजिएगा , बस लौट जाइएगा !
-Sugyata
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