दशानन
🧡 शुभ- विजयादशमी 🧡
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अपने अंदर के रावण का, हमको आज दहन करना है।
गुजरे जीवन की कमियों से, शिक्षा ले चिंतन करना है।।
गल जाता अभिमान सभी का, बल सारा पल में मिट जाता।
धरती पर जब सूरज उगता अँधियारा पल में मिट जाता।।
सोने की लंका नगरी का, मिटने का आधार यही था।
त्रेता में जो धर्मयुद्ध था, उसका सच्चा सार यही था ।।
नैतिकता से गिर जाता जब, मानव मद में अंधा होकर।
उसको सिर्फ अयश ही मिलता, इसका आज मनन करना है।।
अपने अंदर के रावण का, हमको आज दहन करना है।
गुजरे जीवन की कमियों से, शिक्षा ले चिंतन करना है।।
बैर बढ़ाया था रावण ने, उसको पश्चाताप नहीं था।
हरकर भी सीता माता को, उसके मन में पाप नहीं था।।
जब सीधे-साधे भाई को, अपमानित कर मारा उसने।
रामचंद्र के तीखे सायक, दौड़ उठे पापी को डसने।।
जल,थल, नभ , प्राचीर, भवन , निज अन्तःस्थल में हारा रावण।
शिक्षा लेकर संप्रभुता का, हम सबको साधन करना है।।
अपने अंदर के रावण का, हमको आज दहन करना है।
गुजरे जीवन की कमियों से, शिक्षा ले चिंतन करना है।।
त्रेतायुग ऋषि-मुनि का युग था, शक्ति, भक्ति, जप, तप, का बल था।
निष्ठा और प्रतिज्ञा दृढ़ थी, राष्ट्रधर्म चहुँओर प्रबल था।
रिश्तों में कुछ मर्यादा थी, खुला हुआ व्यभिचार नहीं था।
कलियुग जैसा लोभी शासन, भीषण भ्रष्टाचार नहीं था।।
दशमुख का छोटा सा पुतला, धू-धू करके जल जाता है।
रह जाता अभिमान हमारा, उसका आज हवन करना है।।
अपने अंदर के रावण का, हमको आज दहन करना है।
गुजरे जीवन की कमियों से, शिक्षा ले चिंतन करना है।।
(जगदीश शर्मा)